Kavita Gautam

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एक सांझ

"एक सांझ"

लेकर स्वर्ण सी चमक
अनंत रश्मियों के साथ
पूरब से देखो सुबह आ रही है...

समेंटे हुए अनंत
आशाओं को स्वयं में
पश्चिम में सांझ सी
ढलती जा रही है...

ये अंत तो नहीं है
अनंत आशाओं का
परिवर्तन है शायद
समय के चक्र का...

तभी तो ढलने को
एक नई सुबह में
एक सांझ उम्मीदों की फिर से
स्वप्नों की नींद में सोने जा रही है...

अनंत से स्वप्नों को
हकीकत बनाने
सांझ फिर से नई भोर में
परिवर्तित हो रही है...

ये सुबह का इस तरह
सांझ में ढलना
नई सी उमंगों का
व्याकुल सा होना
कहीं पूरब से पश्चिम का
मिलन तो नहीं है...

लेकर स्वर्ण सी चमक
अनंत रश्मियों के साथ
पूरब से देखो सुबह आ रही है...

समेंटें हुए अनंत
आशाओं को स्वयं में
पश्चिम में सांझ सी
ढलती जा रही है...

कविता गौतम...✍️

23-2-२३

दैनिक प्रतियोगिता हेतु।

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5 Comments

Alka jain

01-Mar-2023 07:14 PM

Nice 👍🏼

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बहुत खूब

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बेहतरी 👌👌👌

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